नोएडा (डिजिटल डेस्क)। 12 जून की दोपहर सिर्फ एक विमान हादसे की तारीख नहीं बन गई, बल्कि यह हजारों सपनों के टूटने की तारीख बन गई। उन्हीं टूटे सपनों में एक नाम था — पायल खटीक।
राजस्थान की मिट्टी में पली और गुजरात के हिम्मतनगर में पली-बढ़ी पायल की उड़ान पहली थी... और आखिरी भी। लंदन जाने के सपने लेकर जब पायल एयर इंडिया की फ्लाइट में बैठी, तो किसी को नहीं पता था कि यह सफर उसके जीवन की आखिरी मंज़िल बन जाएगा।
एक बेटी, जो पंख लेकर उड़ी… पर लौटकर नहीं आई
पायल खटीक एक प्राइवेट कंपनी में काम करती थीं। मेहनती थीं, होशियार थीं। तभी तो लंदन के काम के लिए उनका चयन हुआ था। ये उनके करियर का बड़ा मोड़ था — पहली फ्लाइट, पहली विदेश यात्रा, पहला इंटरनेशनल असाइनमेंट। लेकिन उस फ्लाइट के टेकऑफ के कुछ ही देर बाद हादसा हो गया। 242 में से 241 लोग मारे गए, जिनमें एक नाम पायल का भी था।
पिता ने कहा – "मेरी बेटी के पास उड़ने के पंख थे… और मेरा रिक्शा ही उसका रनवे था…"
पायल के पिता सुरेशभाई खटीक, हिम्मतनगर में लोडिंग रिक्शा चलाते हैं। तंगी के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाया, बढ़ाया और सपने देखने की हिम्मत दी। जिस दिन पायल लंदन के लिए रवाना हुई, मोहल्ले में खुशी का माहौल था। लेकिन शाम होते-होते वो खुशी मातम में बदल गई।
पड़ोसियों की भीगी आंखों के बीच सुरेशभाई ने कहा – "मैंने रिक्शा चलाया… ताकि मेरी बेटी उड़े। आज वो उड़ तो गई… पर लौटकर नहीं आई…"
अधूरी रह गई एक कहानी…
पायल की मौत सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है। यह एक अधूरी कहानी है। उस बेटी की, जिसने पिता के पसीने को अपने पंखों में बदला। जिसने मेहनत को ज़िंदगी का ज़रिया बनाया। जो उड़ान भरने निकली थी… लेकिन लौटकर नहीं आई।
अब सिर्फ यादें हैं…
अब उनके कमरे में उनकी किताबें हैं, एक कॉफी मग है जिसमें “Dream Big” लिखा है, और दीवार पर लगा वो कैलेंडर… जिसमें उन्होंने 13 जून को लिखा था — “London Calling”
हम सब पायल को सलाम करते हैं।
उस हौसले को सलाम करते हैं।
और उस पिता को सलाम करते हैं,
जिसने रिक्शा को रनवे बना दिया।