सेक्टर 39 स्थित जिला अस्पताल | पाठकराज
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नोएडा। जिले में लंबे समय से चल रही डॉक्टरों की कमी को दूर करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। शासन से मंजूरी मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने 12 डॉक्टरों की तैनाती की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इनमें से पांच डॉक्टरों ने जिला अस्पताल समेत अन्य प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ज्वाइन कर लिया है, जबकि शेष सात डॉक्टरों को 17 जून तक कार्यभार ग्रहण करने के निर्देश दिए गए हैं।
जिला कार्यक्रम अधिकारी मंजीत कुमार ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य कार्यक्रमों के तहत कुल 15 डॉक्टरों की नियुक्ति होनी थी। इनमें से 12 डॉक्टरों का चयन कर लिया गया है। चयन प्रक्रिया लगभग दो सप्ताह पूर्व आयोजित साक्षात्कार के आधार पर की गई थी, जिसके बाद जिला कलेक्ट्रेट स्तर पर औपचारिक नियुक्ति प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया।
डॉक्टरों की कमी से पिछड़ी रैंकिंग, अब सुधार की उम्मीद
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, डॉक्टरों की भारी कमी के चलते पिछले तीन महीनों में जिले की स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही थीं। इसका सीधा असर प्रदेश द्वारा तय स्वास्थ्य रैंकिंग पर भी पड़ा। नोएडा का प्रदर्शन अन्य जिलों की तुलना में कमजोर हो गया था।
हालांकि, मई महीने से इसमें आंशिक सुधार दर्ज किया गया है। अब नई नियुक्तियों के बाद जिले की स्वास्थ्य रैंकिंग में और भी सुधार आने की उम्मीद है।
अभी भी तीन पद रिक्त, भर्ती की प्रक्रिया जारी
हालांकि, विभाग में अभी भी तीन डॉक्टरों के पद रिक्त हैं। इन पदों पर भी जल्द नियुक्ति के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। अधिकारी मंजीत कुमार ने बताया कि रिक्त पदों को भरने के लिए दोबारा साक्षात्कार प्रक्रिया आयोजित की जाएगी।
स्वास्थ्य सेवाओं में आएगा सुधार
नई नियुक्तियों से जिला अस्पताल, पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) और सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) पर डॉक्टरों की उपलब्धता बेहतर होगी। इससे न केवल मरीजों को समय पर इलाज मिलेगा बल्कि रेफरल की स्थिति में भी सुधार आएगा। जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने और आमजन को बेहतर चिकित्सा सुविधा प्रदान करने की दिशा में यह तैनाती एक बड़ा और सकारात्मक कदम माना जा रहा है।
जनता को मिलेगी राहत
स्वास्थ्य विभाग की इस पहल से ग्रामीण क्षेत्रों तक गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाएं पहुंचाने में मदद मिलेगी। स्थानीय निवासियों को अब मामूली बीमारियों या सामान्य इलाज के लिए निजी अस्पतालों की ओर रुख नहीं करना पड़ेगा। इससे न केवल आर्थिक बोझ घटेगा, बल्कि सरकारी अस्पतालों पर लोगों का विश्वास भी बढ़ेगा।