एक्स पर लोगो के पोस्ट | पाठकराज
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नई दिल्ली। दिल्ली सरकार द्वारा 15 साल से पुराने पेट्रोल और 10 साल से पुराने डीजल वाहनों पर सख्ती बरतते हुए ईंधन भरवाने पर रोक लगाने के फैसले ने राजधानी में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। इस प्रतिबंध को ANPR (Automated Number Plate Recognition) कैमरों की मदद से लागू किया जा रहा है ताकि शहर में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सके।
हालांकि सरकार का दावा है कि यह निर्णय जनस्वास्थ्य और पर्यावरण की रक्षा के उद्देश्य से लिया गया है, लेकिन वाहन मालिकों के लिए यह आर्थिक और व्यावहारिक संकट बनता जा रहा है। सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि जब रोड टैक्स 15 साल के लिए वसूला जाता है, तो फिर डीजल वाहनों को 10 साल में ही सड़कों से हटाने की जरूरत क्यों पड़ी?
सोशल मीडिया पर लोगों का फूटा गुस्सा
सरकार के इस कदम को लेकर सोशल मीडिया पर आलोचना का दौर जारी है।
एक यूज़र वरुण बहल लिखते हैं
“अगर टैक्स 15 साल के लिए लिया गया है, तो डीजल कारों को 10 साल में स्क्रैप करने का क्या मतलब?”
एक अन्य यूज़र ने कहा
“NCR में 15 साल पुरानी गाड़ियां मुश्किल से 30% ही चली होती हैं। सरकार को वाहन की हालत देखकर फैसला लेना चाहिए, न कि केवल उम्र के आधार पर।”
टैक्स बनाम बंदी: क्या यह न्यायसंगत है?
भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार,
“गैर-परिवहन (प्राइवेट) वाहनों पर 15 वर्षों के लिए एकमुश्त टैक्स लिया जाता है। इसके बाद वाहन रजिस्ट्रेशन के नवीनीकरण पर 5 वर्षों के लिए टैक्स देना होता है।”
इसका मतलब है कि डीजल कार मालिकों ने 15 साल के उपयोग का टैक्स पहले ही भर दिया होता है, लेकिन उन्हें 10वें साल में ही वाहन बंद करने को मजबूर किया जा रहा है। इस असमानता से आम लोगों का भरोसा नीति-निर्माण पर कमजोर होता दिखाई दे रहा है।
सरकार की दलील: सेहत पहले
दिल्ली सरकार का तर्क है कि यह निर्णय शहर की गंभीर वायु प्रदूषण समस्या को देखते हुए लिया गया है। डीजल वाहनों को प्रदूषण का बड़ा स्रोत माना जाता है।
सरकार के एक अधिकारी ने बताया
“हम किसी की सुविधा नहीं, बल्कि लाखों लोगों की सांसों की रक्षा करने के लिए यह कदम उठा रहे हैं। नियम सख्त हैं, लेकिन जरूरी हैं।”