Sunday, August 17, 2025 02:34:27 AM

फिर विवादों में ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी
शारदा यूनिवर्सिटी के छात्र ने हॉस्टल में फांसी लगाकर दी जान, परिवार ने यूनिवर्सिटी पर लापरवाही का लगाया आरोप

ग्रेटर नोएडा के शारदा यूनिवर्सिटी के छात्र ने हॉस्टल में आत्महत्या की। परिवार ने यूनिवर्सिटी पर लगाया लापरवाही का आरोप, कहा नहीं मिली उचित सूचना।

शारदा यूनिवर्सिटी के छात्र ने हॉस्टल में फांसी लगाकर दी जान परिवार ने यूनिवर्सिटी पर लापरवाही का लगाया आरोप
फाइल फोटो | पाठकराज
पाठकराज

ग्रेटर नोएडा। स्वतंत्रता दिवस की रात नॉलेज पार्क स्थित एचएमआर हॉस्टल में एक दिल दहला देने वाली घटना घटी। शारदा यूनिवर्सिटी में बीटेक (कंप्यूटर साइंस) अंतिम वर्ष के छात्र शिवम डे (24 वर्ष) ने चादर से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

मूलरूप से बिहार के पूर्णिया जिले के मधुबनी कॉलोनी का रहने वाला शिवम घटना के समय कमरे में अकेला था। उसका रूममेट बाहर गया हुआ था। जब तक साथियों और हॉस्टल प्रशासन को जानकारी मिली, शिवम की मौत हो चुकी थी।

 

परिवार और पृष्ठभूमि

पिता: कार्तिक चंद्र डे (प्राइवेट कंपनी में कार्यरत)

मां: कविता डे (गृहिणी)

बहन: स्निग्धा डे, कक्षा 10वीं की छात्रा

घर दूरी: 1300 किमी से भी अधिक, जिससे हादसे की खबर परिजनों तक पहुंचने में देर हुई।

परिवार ने बताया कि दो महीने पहले ही शिवम माता-पिता के साथ वैष्णो देवी दर्शन कर लौटा था। वह शांत और विनम्र स्वभाव का था। हॉस्टल वार्डन और मित्रों ने भी बताया कि वह बहुत कम बातचीत करता था और हाल ही में कई बार उदास दिखा।

 

पढ़ाई में दिक्कतें

शिवम ने वर्ष 2022 में शारदा यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था। पहले ही वर्ष उसकी कई विषयों में बैक आ गई थी। पिता ने बेटे की पढ़ाई के लिए नौकरी के साथ-साथ लोन लेकर फीस भरी थी। मौके से एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है, जिसमें शिवम ने आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया। नॉलेज पार्क कोतवाली प्रभारी ने बताया कि शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है और मामले की जांच की जा रही है।

 

परिवार का गंभीर आरोप

परिजनों का कहना है कि — “कॉलेज ने लगातार फीस ली, लेकिन यह कभी नहीं बताया कि शिवम पिछले दो साल से कक्षाओं में नहीं जा रहा था। अगर हमें समय पर सूचना मिलती तो हम उसे संभाल सकते थे। यह लापरवाही उसकी जान पर भारी पड़ी।” यह मामला एक बार फिर यूनिवर्सिटी और कॉलेज प्रशासन की जिम्मेदारियों पर सवाल खड़ा करता है। क्या संस्थानों को केवल फीस वसूलने तक ही सीमित रहना चाहिए, या छात्रों की मानसिक स्थिति और उपस्थिति पर भी नजर रखनी चाहिए?


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