सेक्टर 66 की एक दुकान | पाठकराज
पाठकराज
नोएडा। देश की अग्रणी योजनाबद्ध नगरी होने का दावा करने वाला नोएडा आज फुटपाथ और सड़कों पर अवैध कार बाजार का गढ़ बनता जा रहा है। सेक्टरों के बाहर और प्रमुख मार्गों पर सैकड़ों पुरानी कारें बेधड़क बिक रही हैं। न तो इन पर किसी तरह का प्राधिकरण की अनुमति (NOC) है, और न ही परिवहन विभाग की निगरानी।
यह नजारा अब स्थायी रूप ले चुका है — सड़कों के किनारे लगी गाड़ियों की कतारें, खुले में मोलभाव, ट्रायल ड्राइव, और फिर वहीं पर सौदा। यह सब कुछ होता है आम जनता की सुविधा, ट्रैफिक नियमों और शहरी अनुशासन की धज्जियाँ उड़ाकर।
कहां-कहां सजा है यह अवैध बाजार?
नोएडा के सेक्टर 16, 18, 63, 66, 44, 49, 104, 110, 122, 128 और उसके आस-पास के क्षेत्रों में ये बाजार सक्रिय रहते हैं। खासकर मेट्रो स्टेशनों के पास, पार्कों की बाउंड्री के किनारे, वाणिज्यिक गलियारों में निजी गाड़ियाँ खड़ी कर दी जाती हैं, जो आम नागरिकों के लिए जाम और असुविधा का कारण बनती हैं।
सिस्टम की चुप्पी
नोएडा प्राधिकरण के पास ऐसी कोई आधिकारिक योजना नहीं है, जिसमें फुटपाथ या सड़कों को वाहनों की बिक्री के लिए अनुमति दी गई हो।
आरटीओ विभाग इस तथ्य से अनभिज्ञ बना बैठा है कि कई निजी नंबर की गाड़ियाँ व्यावसायिक रूप से बेची जा रही हैं, जबकि ऐसा करना मोटर वाहन अधिनियम का उल्लंघन है।
स्थानीय पुलिस और यातायात विभाग तक को इस पर कोई ऐतराज नहीं है — जैसे यह एक ‘स्वीकृत व्यवस्था’ हो।
दिल्ली रजिस्ट्रेशन वाली गाड़ियों की खुलेआम बिक्री
शहर में बिक रहीं गाड़ियों में अधिकांश का पंजीकरण दिल्ली, हरियाणा या अन्य राज्यों से हुआ होता है। स्थानीय परिवहन विभाग की अनदेखी के चलते ये गाड़ियाँ बिना री-रजिस्ट्रेशन और रोड टैक्स दिए ही चल रही हैं, जिससे राजस्व का नुकसान भी हो रहा है। यह अवैध कार बाजार अब एक संगठित कारोबार का रूप ले चुका है, जो हर सप्ताह लाखों रुपये का टर्नओवर करता है — वो भी बिना किसी सरकारी मंजूरी के। सवाल यह है कि क्या यह प्रशासन की मिलीभगत से हो रहा है? और अगर नहीं, तो किसे रोकने की जिम्मेदारी दी गई है?
जारी रहेगा…
अगले भाग में पढ़ें:
कैसे निजी नंबर की गाड़ियाँ बन गई हैं व्यावसायिक धंधे का जरिया?
किसके संरक्षण में फल-फूल रहा है यह अवैध बाजार?