बाबा की फाइल फोटो | पाठकराज
पाठकराज
हाथरस, 2 जुलाई 2025। 2 जुलाई 2024 — एक ऐसा दिन जिसे हाथरस ही नहीं, पूरा देश आज भी दहशत और पीड़ा के साथ याद करता है। फुलरई गांव में साकार विश्वहरि उर्फ सूरजपाल के सत्संग के दौरान मची भगदड़ में 121 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। यह उत्तर प्रदेश के इतिहास की सबसे भीषण धार्मिक दुर्घटनाओं में से एक थी।
आज इस भयावह हादसे को एक वर्ष बीत चुका है। इस एक साल में राजनीति बदली, अफसर बदले, आरोप तय हुए और जमानतें मिल गईं — लेकिन न तो कोई सजा हुई और न ही किसी को दोषी ठहराया गया।
क्या हुआ उस दिन? — हादसे की पृष्ठभूमि
फुलरई गांव के पास खेतों में सत्संग स्थल बनाया गया था, जिसमें 80,000 की अनुमति थी लेकिन 2 लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंच गए। सत्संग खत्म होने के बाद चरण रज लेने और बाबा के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ अचानक बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई।
इस भगदड़ में महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे कुचले गए, दर्जनों लोग दम घुटने से मरे और प्रशासन मौके पर नदारद रहा।
जांच, कार्रवाई और पुनः बहाली — जिम्मेदारी की अदला-बदली
एसआईटी की रिपोर्ट में कौन दोषी?
मुख्यमंत्री के आदेश पर गठित विशेष जांच टीम (SIT) की रिपोर्ट में:
सेवादारों को मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया गया
किसी षड्यंत्र की संभावना को भी नकारा नहीं गया
प्रशासनिक लापरवाही को गंभीर माना गया
रिपोर्ट के आधार पर SDM, तहसीलदार, CO, SHO और दो चौकी प्रभारी निलंबित हुए।
अब तक क्या हुआ?
5 अफसर बहाल हो चुके हैं
11 सेवादार और आयोजक जेल गए, लेकिन सभी जमानत पर रिहा
मुख्य आयोजक और बाबा साकार विश्वहरि को जांच एजेंसी ने क्लीनचिट दी
121 मौतों का अब तक कोई स्पष्ट जिम्मेदार तय नहीं
11 आरोपितों को मिली जमानत, कोई दोष सिद्ध नहीं
चार्जशीट में जिन 11 आयोजकों का नाम है, वे सभी अब जेल से बाहर हैं। इनमें शामिल हैं:
देवप्रकाश मधुकर (मुख्य सेवादार)
उपेंद्र यादव
मेघसिंह
मंजू यादव
मुकेश कुमार
मंजू देवी
राम लड़ैते यादव
रामप्रकाश शाक्य
संजू यादव
दुरवेश कुमार
दलवीर पाल
सभी आरोपियों पर भीड़ नियंत्रित न करने, साक्ष्य मिटाने और अनुमति से अधिक भीड़ बुलाने का आरोप है।
जिन्हें निलंबित किया गया, अब वे कहां हैं?
अधिकारी |
दोष |
वर्तमान स्थिति |
आनंद कुमार (CO) |
कार्यक्रम की सूचना न देना |
DGP कार्यालय संबद्ध |
सुशील कुमार (तहसीलदार) |
भीड़ अनुमान की विफलता |
सिरसागंज में तहसीलदार |
आशीष कुमार (SHO) |
सुरक्षा में लापरवाही |
हाथरस में 'ऑपरेशन पहचान' |
ब्रजेश पांडे (चौकी प्रभारी पोरा) |
सत्संग स्थल की अनदेखी |
सादाबाद कोतवाली |
मनवीर चौधरी (चौकी प्रभारी कचौरा) |
सूचना न देना |
पुलिस लाइंस |
SDM रविंद्र कुमार की अब तक बहाली नहीं हुई है।
पीड़ित परिवारों की व्यथा: न्याय अब भी अधूरा
घटना में मारे गए 121 लोगों के परिजनों को आज भी न्याय की तलाश है। सरकार ने मुआवजा तो दिया, लेकिन किसी को दोषी सिद्ध नहीं किया गया। पीड़ित परिवारों का सवाल है
“अगर कोई दोषी नहीं, तो फिर हमारे अपने कैसे मरे?”
बड़े सवाल जो आज भी जवाब मांगते हैं
जब भीड़ अनुमान से कहीं अधिक थी, तो कार्यक्रम की अनुमति क्यों दी गई?
जब स्थानीय पुलिस और प्रशासन को जानकारी थी, तो सुरक्षा इंतजाम क्यों नाकाफी रहे?
121 लोगों की मौत का कोई दोषी क्यों तय नहीं हुआ?
क्या इस तरह की धार्मिक भीड़ के आयोजनों के लिए कोई जवाबदेही तंत्र नहीं है?
एक बरसी, सैकड़ों सवाल और अधूरी न्याय प्रक्रिया
हाथरस सत्संग हादसा एक साल बाद भी प्रशासनिक असंवेदनशीलता, धार्मिक अंधभक्ति और सिस्टम की विफलता की मिसाल बना हुआ है। जहां राजनीतिक बयानबाजी हुई, मुआवजा बांटे गए, वहीं न्याय और जवाबदेही अब भी हवा में झूल रही है।