सांकेतिक तस्वीर | पाठकराज
पाठकराज
नोएडा/दिल्ली। एक समय था जब देह व्यापार केवल शहरों के सीमित ‘रेड लाइट एरिया’ तक सिमटा रहता था। लेकिन आज, इंटरनेट और सोशल मीडिया के युग में देह व्यापार का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। कोठों की जगह अब WhatsApp ग्रुप, Telegram चैनल और Escort Apps ने ले ली है, और शिकार बनाई जा रही हैं कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियां, जिन्हें पहले प्रेमजाल और फिर पैसों की लालच या मजबूरी में इस दलदल में धकेला जाता है।
ऑनलाइन हो गया जिस्म का सौदा
देह व्यापार अब सिर्फ भट्ठियों और संकरी गलियों तक सीमित नहीं रहा। ब्रोकर अब कोठे नहीं, स्मार्टफोन चला रहे हैं। कुछ मुख्य प्लेटफॉर्म जहां यह गतिविधि चलती है
WhatsApp/Telegram पर “VIP Escort Groups”
Instagram DMs में “पेड डेटिंग” ऑफर
वेबसाइटों/ऐप्स के ज़रिए होटल-आधारित ‘बुकिंग्स’
कॉल सेंटर की आड़ में रैकेट
कई बार होटल स्टाफ और ऑनलाइन ट्रैवल साइट्स से भी कॉल गर्ल रैकेट जुड़े पाए गए हैं।
कॉलेज गर्ल्स कैसे फंसती हैं?
मॉडलिंग या पार्ट-टाइम जॉब का झांसा
सोशल मीडिया पर "Sugar Daddy" स्कीम
शुरुआती पार्टियों में बुलाकर शराब/ड्रग्स देकर वीडियो बनाना
फिर ब्लैकमेल और मजबूरी में ‘क्लाइंट सर्विस’
कुछ लड़कियाँ मजबूरीवश, कुछ लालच में खुद भी आगे जुड़ती हैं
NCR में पिछले 2 वर्षों में पकड़े गए 50 से अधिक केसों में 40% लड़कियाँ कॉलेज या प्रोफेशनल कोर्सेज की छात्राएं थीं।
दिल्ली-एनसीआर के हॉटस्पॉट
नोएडा सेक्टर-18, 22, 63, 71
गुड़गांव के एमजी रोड और सोहना रोड
फरीदाबाद के NIT क्षेत्र
दिल्ली का पहाड़गंज, करोल बाग, महिपालपुर
एयरबीएनबी और बजट होटल्स का गुप्त नेटवर्क
कई बार खुद लड़कियां बन जाती हैं दलाल
लालच और मजबूरी के इस दलदल में एक बार फंसने के बाद कुछ लड़कियाँ खुद ही ब्रोकर या एजेंट बन जाती हैं — और दूसरी लड़कियों को लाकर कमिशन कमाने लगती हैं। यह चक्रव्यूह इतना तेज़ी से फैलता है कि पता ही नहीं चलता कि कब एक छात्रा से वह "कस्टमर हैंडलर" बन जाती है।
पुलिस की कार्रवाई, लेकिन असली जड़ें छुपी हैं
2024 में नोएडा पुलिस ने 70 से अधिक रैकेट पकड़े
2025 के पहले 6 महीनों में ही 250 से ज्यादा गिरफ्तारियां
लेकिन अधिकतर गिरफ़्तार सिर्फ "फ्रंट लाइन", असली मास्टरमाइंड आज भी अछूते।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, साइबर साक्ष्य जुटाना मुश्किल, क्योंकि Telegram/Signal जैसे प्लेटफॉर्म पर सब कुछ ‘एंड टू एंड एन्क्रिप्टेड’ होता है।
समाज और प्रशासन के लिए बड़ा सवाल
क्या हमने सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के खतरों को नज़रअंदाज़ किया?
क्या स्कूल-कॉलेज स्तर पर लड़कियों को डिजिटल शोषण और लालच के जाल से बचाने की तैयारी है?
पुलिस और NGO मिलकर क्या साइबर जागरूकता और बचाव अभियान चला रहे हैं?
विशेषज्ञों की राय
“यह अब सिर्फ कानून-व्यवस्था नहीं, मानसिक और डिजिटल युद्ध है। लड़कियों को सोशल मीडिया सुरक्षा और डिजिटल शोषण से जुड़ी शिक्षा दी जानी चाहिए।”
— डॉ. शालिनी गुप्ता, साइकोलॉजिस्ट
“बिना होटल मालिक, ऐप मैनेजर्स और पेमेंट सिस्टम की मिलीभगत के यह संभव नहीं। हमें पूरे नेटवर्क पर मार करनी होगी।”
— डीसीपी, नोएडा जोन-1